۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
आगा

हौज़ा / हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमुली ने कहा,जिस शख्स ने खुदा को पहचान लिया और उसकी मारिफ़त हासिल की तो वह खुद को भी पहचान लेगा और जो खुद को नहीं पहचानता तो वह अल्लाह की मारिफ़त भी हासिल नहीं कर सकता।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,एक रिपोर्ट के अनुसार, हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा जवादी आमुली ने मस्जिद ए आज़म क़ुम में जारी अपने दरस-ए-अख़लाक़ को शरह ए नहजुल बलागा के ख़ुत्बे को बयान करते हुए कहा, अगर हम किताब "काफी" के मवाद पर ग़ौर करें तो हमें मालूम होता है कि मासूमीन अ.स. अपने असहाब से किस तरह गुफ़्तगू करते थे।

इमाम अली अ.स. ने कभी अपने असहाब से नहीं पूछा कि उन्होंने पिछले दरस में क्या सीखा बल्कि उनसे पूछा करते थे कि उन्होंने गुज़श्ता रात को क्या देखा?

हज़रत आयतुल्लाह जवादी आमुली ने कहा, अंबिया अ.स. जो चीज़ें लाए उनमें सबसे अहम बात यह थी कि इल्म का असल ज़रिया इल्म-ए-हुज़ूरी है न कि इल्म-ए-हुसूली! और इल्म-ए-हुज़ूरी की इब्तिदा (शुरुआत) मारिफ़त-ए-नफ़्स से होती है। इंसान खुद को मफ़हूम से नहीं बल्कि इल्म-ए-हुज़ूरी से जानता और पहचानता है।

उन्होंने आगे कहा,इंसान जब खुद को दरक करता है तो वह उसका हक़ीक़ी और खारजी वजूद होता है, न कि ज़ेहनी तसवीर। कभी इंसान मस्जिद या सड़क का तसव्वुर करता है और उनकी तस्वीरें ज़ेहन में लाता है, जो कि इल्म-ए-हुसूली है लेकिन कभी वह खुद इन चीज़ों को देखता है जो कि इल्म-ए-हुज़ूरी है।

इस मरजए तकलीद ने कहा,पैग़ंबर अक़्दस स.अ.व. के बाद सबसे अज़ीम आलिम हज़रत अली अ.स. थे। वे अल्लाह के इज़्न से फरमाते हैं ""ما للعالم اکبر منی"" यानी सारी दुनिया में मेरी तरह का कोई मर्द नहीं है। पैग़ंबर स.अ.व. ने फरमाया: "अली अंफुसना" यानी अली हमारा नफ़्स हैं। जो कुछ अल्लाह ने इंसानों को देना था वह सब अली अ.स. को दिया अली अ.स. आज भी ज़िंदा हैं और हम रोज़ाना उनके फरामीन नहजुल बलागा का मुताला करते हैं।

उन्होंने कहा: हज़रत अली अ.स. ने फरमाया, माल खर्च करने से कम होता है लेकिन इल्म देने से और बढ़ता है। हमें यह भी रिवायत में मिलता है कि पैग़ंबर स.अ.व. ने फरमाया,अगर मैं माल को दो बार कर्ज़ दूं तो यह सदक़ा देने से कहीं बेहतर है क्योंकि इससे लोगों की इज़्ज़त महफूज़ रहती है और वे अपने काम में मसरूफ़ रहते हैं।

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